भीमा कोरेगांव (कोरेगांव-भीमा) युद्ध की वर्षगांठ के मौके पर सोशल मीडिया पर एक तस्वीर जमकर वायरल हो रही है, जिसमें 2 योद्धा नजर आ रहे हैं। इस तस्वीर को शेयर कर सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि यह भीमा कोरेगांव युद्ध में लड़ने वाले दो महार योद्धाओं की ‘दुर्लभ’ तस्वीर है।
ये तस्वीर कई अलग-अलग सोशल मीडिया यूजर्स समान दावे के साथ शेयर कर रहे हैं।
क्या है वायरल तस्वीर?
दरअसल, Pintu.3092 (Archieved Link) नाम के इंस्टाग्राम यूजर ने इस तस्वीर को अपने हैंडल पर शेयर किया है, जिसपर लिखा है – “भीमा कोरेगांव के दो महार योद्धा। भीमा कोरेगांव के युद्ध में दो महार योद्धा सैनिक को कि दुर्लभ तस्वीर।”
हालांकि टूडे समाचार ने अपनी पड़ताल में पाया है कि वायरल हो रही इस तस्वीर का भीमा कोरेगांव से कोई संबंध नहीं है और ये दावा पूरी तरह से फर्जी है।
फैक्टचेक
टूडे समाचार ने सबसे पहले ये गौर किया कि भीमा-कोरेगांव युद्ध 1818 की घटना है और भारत में इस समय तक कैमरे का कोई नामो निशान नहीं था। दरअसल, भारत में कैमरे का पहली बार आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल साल 1855 में हुआ था।
visionsofindia.blogspot.com पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, भारत में फोटोग्राफी के उपकरण 1850 के आस-पास पहुंचे और 1854 में मुंबई में बंबई फोटोग्राफिक सोसाएटी का गठन हुआ, जिसके 200 सदस्य थे। ऐसे में ये साफ हो गया कि ये तस्वीर भीमा-कोरेगांव युद्ध की नहीं बल्कि कही और की है।
ऐसे में हमने अपनी पड़ताल की शुरूआत तस्वीर को रिवर्स सर्च करके की तो हमें यह तस्वीर एंग्लोजुलुवॉर डॉटकॉम जर्नल की पृष्ठ संख्या आठ पर लगी मिली। जर्नल में दी गई जानकारी के मुताबिक, वायरल तस्वीर में दिख रहे दो शख्स प्रिंस डिनुजुलु और प्रिंस डाबुको हैं। साल 1888 में विद्रोह के दौरान नतला अधिकारियों की तरफ से दोनों को गिरफ्तार किए जाने के बाद ये तस्वीर ली गई थी।
पड़ताल के दौरान अलामी डॉटकॉम की वेबसाइट पर भी हमें यह तस्वीर दक्षिणी अफ्रीका के म्यूजियम के हवाले से लगी मिली। वहीं इस वायरल तस्वीर को लेकर जब हमारी टीम ने 1818 में भीमा-कोरेगांव की लड़ाई लड़ने वाले दिवंगत खांदोजिबिन गजोजी जमादार (मालवदकर) की सातवीं पीढ़ी के वकील रोहन जमादार से संपर्क किया तो उन्होंने भी साफ तौर पर इस वायरल तस्वीर को फर्जी बताया और कहा कि ये तस्वीरें भीमा-कोरेगांव युद्ध में शामिल योद्धाओं की नहीं है।
इस दौरान उनके द्वारा हमारी टीम को इससे संबंधिक सबूत भी उपलब्ध कराए गए। इन दस्तावेजों में इस युद्ध का विवरण साफ तौर पर किया गया था।
वहीं इसके बाद एंग्लो-जुलु वार 1879 के बारे में जानकारी सर्च करते हुए हमारी टीम ने ब्रिटैनिका डॉटकॉम की एक रिपोर्ट पर पाया कि एंग्लो-जुलु वार 1879 में दक्षिण अफ्रीका में छह महीने लंबी चली लड़ाई थी, जिसमें ब्रिटिश आर्मी के हाथों जुलुओं की हार हुई थी।
ऐसे में टूडे समाचार की इस पड़ताल के बाद ये साफ हो गया है कि वायरल तस्वीर का ये दावा पूरी तरह से फर्जी है। वायरल तस्वीर में दिखने वाले शख्स भीमा-कोरेगांव युद्ध के योद्धा नहीं बल्कि जुलु रिसायत के राजकुमार हैं।