सीखने के लिए कुछ भी कर जाने का ऐसा जज्बा, दो बहनों की अनोखी कहानी

रिपोर्ट : स्वाती सिंह
नई दिल्ली : कहते हैं ना जब जज्बा हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं आपमें बस एक लय होनी चाहिए। ये वहीं लय है जो आपको कुछ भी कर जाने का डेडीकेशन देता है। दरअसल इस महामारी के दौरान शिक्षा का मुख्य साधन इंटरनेट है। इस कोरोना के कठिन समय में छात्रों को घर रहने के लिए कहा गया था कयोंकि देश का भविष्य ज्यादा जरुरी है। जहां स्कूल कॉलज बंद हैं तो छात्र ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन इसके सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां कोने-कोन में इंटरनेट नहीं पहुंच पाता है।
देशों में अभी भी कई हिस्से हैं जहां नेट नहीं है और हैं भी तो काफी धीमी। नेट के काफी धीमी रफ्तार के कारण पढाई करना मु्श्किल हो जाता है। लेकिन इस कठिन समस्याओं को छात्र अपने जज्बे से पीछे छोड़ दे रहे हैं। आज हम आपको ऐसी ही दो बहनों की कहानी सुनाएंगे जो इंटरनेट के अभाव को पूरा करने के लिए पेड़ पर बैठकर अपनी पढ़ाई कर रही हैं।
कोरोना वायरस महामारी के दौरान, बहुत से छात्र इंटरनेट तक पहुंच नहीं होने के कारण ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो पाए हैं। ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहाँ छात्रों को एक ऐसी जगह पहुँचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जहाँ उन्हें उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी मिल सकती है। एक ऐसा ही मामला पश्चिमी एल सल्वाडोर का है, जहां दो बहनें अपने ऑनलाइन कॉलेज की क्लास लेने के लिए एक पहाड़ पर हर रोज चढ़ती हैं जिसके लिए वो कई किलोमीटर चलती हैं, फिर एक जैतून के पेड़ पर चढ़कर इंटरनेट का सिग्नल लाते हैं फिर वहां पर अपनी पढ़ाई पूरी करती हैं।
ये दोनों बहनें अपनी पढ़ाई को पूरा करना चाहती है और इसके लिए वह हर रोज कठिन परिश्रम करती हैं। कई किोमीटर पैदल चलने के बाद ये दोनों पहाड़ पर चढती है और इसके बाद पेड़ पर बैठ कर वहां पर अपनी पढ़ाई करती है।उनके पास कोई और विकल्प नीं हैं क्योंकि वो जहां रहती है वहां इंटरनेट की रफ्तार बहुत धीमी रहती है। इन दोनों बहनों की कहानी पढ़कर कई लगों को जज्बा आएगा। ये बहने दुनिया को बताती है कि कुछ भी असंभव नहीं है बस आपको जज्बा होना चाहिए कुछ कर जाने का। बता दें कि इंटरनेट वर्ल्ड स्टेटस के अनुसार, अल साल्वाडोर के 6.6 मिलियन निवासियों में से लगभग 60 प्रतिशत लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं।