जिनमें नहीं कोई लक्षण, फिर भी वो फैला सकते है संक्रमण

नई दिल्ली : कोरोना वायरस के लक्षण को लेकर अब तक ना जानें ऐसी कई खबरें आ चुंकी है, जिसने लोगों के होश उड़ा दिये है। जिसके बाद से वो लगातार कई तरह की औषधिय विधि अपना रहे हैं, जिससे वो इस वायरस से सुरक्षित रह सकें। इसी बीच एक ऐसी खबरें आई है जो और भी चौंकाने वाले है। खबरों की मानें तो कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखता, वे अन्य लोगों में कोरोना संक्रमण फैला सकते है।
बता दें इसका दावा किया है साउथ कोरिया के वैज्ञानिकों ने, जिनके एक अध्ययन के अनुसार, बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमित लोगों की नाक, गले और फेफड़ों में उतने ही कोरोना वायरस मौजूद होते हैं जितने कोरोना से बीमार किसी शख्स में। स्टडी में यह भी पता चला है कि बीमार लोगों के शरीर में जितने दिन तक वायरस होते हैं, करीब-करीब उतने ही दिन तक बिना लक्षण वाले लोगों में भी कोरोना वायरस मौजूद रहते हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ बेंजामिन कॉलिंग का कहना है कि निश्चित तौर से इस स्टडी का डेटा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह स्टडी उस थ्योरी को साबित करती है जिसको लेकर हम काफी समय से आशंका करते रहे हैं। वहीं अमेरिका की Tufts University की वायरोलॉजिस्ट मार्टा गागलिया कहती हैं कि असल में इस बात का कोई कारण नहीं है कि बिना लक्षण वाले लोग, लक्षण वाले लोगों के मुकाबले अलग तरीके से वायरस संक्रमित करते होंगे।
वहीं कुछ एक्सपर्ट की मानें तो उनके अनुसार बिना लक्षण वाले लोग कम खांसते या छींकते हैं, इसलिए उनके वायरस फैलाने की आशंका कम रहती है। लेकिन गागलिया कहती हैं कि लक्षण वाले लोग हॉस्पिटल या घरों में आइसोलेट हो जाते हैं, लेकिन बिना लक्षण वाले लोग घूमते रहते हैं या अपने दफ्तर जाना भी जारी रखते हैं। इस दौरान वे काफी लोग संक्रमण का शिकार हो सकते है।
आपको बता दें कि इसका अध्ययन संबंधित आलेख JAMA Internal Medicine में प्रकाशित किया गया है। जिसके शोध के लिए साउथ कोरिया की टीम ने 6 मार्च से 26 मार्च के दौरान 193 लक्षण वाले और 110 बिना लक्षण वाले लोगों के सैंपल लिए जिन्हें आइसोलेट करके रखा गया था। 110 बिना लक्षण वाले मरीजों में से 89 लोगों में बाद में लक्षण नहीं उभरे, जबकि 21 लोगों में बाद में लक्षण दिखाई दिए। बता दें कि इस अध्ययन में शामिल ज्यादातर लोग युवा थे।
खैर बात जो भी हो लेकिन अब यह देखना है कि यह अध्ययन विश्व स्तर पर कितना कामयाब होता है।