खुशखबरी ! इस जीव के नीले खून से बनेगी कोरोना वैक्सीन, कीमत जान रह जाएंगे दंग

 
खुशखबरी ! इस जीव के नीले खून से बनेगी कोरोना वैक्सीन, कीमत जान रह जाएंगे दंग

रिपोर्ट: रितिका आर्या

नई दिल्ली: कोरोना वायरस एक ऐसी महामारी का रूप ले चुका है जिसका अब तक कोई तोड़ नहीं निकला है। ज्यादातर देश इस वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं ताकि इस वायरस से संक्रमित लोगों को बचाया जा सके लेकिन अब तक कोई भी देश इसमें सफल नहीं हुआ है। वायरस की वैक्सीन बनाने में लगी जोर आजमाइश के बीच वैज्ञानिकों ने एक जीव द्वारा कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाने की बात कही है। वैज्ञानिकों का कहना है इस जीव के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाना संभव है।वैज्ञानिकों ने जगजीत के खून से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की बात कही है उसका नाम हॉर्सशू क्रैब (Horseshoe Crab) है। ये हॉर्सशू क्रैब (Horseshoe Crab) काफी दुर्लभ है। इसके अलावा इस जीव की खास बात ये है कि इस जीव के नीले खून की कीमत 11 लाख रुपए हैं। इस इकलौता के खून के लिए दवा कंपनियां काफी खर्च करती हैं क्योंकि इस जीव का नीला खून वैक्सीन, दवाएं और स्टराइल लिक्विड्स के निर्माण में सहायक है।

बता दें, हॉर्सशू क्रैब (Horseshoe Crab) है एक दुर्लभ प्रजाति के केकड़ों में से एक है। जानकारों की माने तो हॉर्स शू केकड़ा दुनिया के सबसे पुराने जीवों में से एक हैं। जो पृथ्वी पर करीब 45 करोड़ साल से जी रहा हैं।

दवा कंपनियों के अनुसार, हॉर्सशू क्रैब के खून से बहुत सारी दवाई सुरक्षित रूप से बनाई जा सकती है। हॉर्सशू क्रैब के खून में लिमुलस अमीबोसाइट लाइसेट नाम का तत्व पाया जाता है जो शरीर में एंडोटॉक्सिन नाम का बुरा रासायनिक तत्व की खोज करता है। इस तत्व का रिसाव किसी भी संक्रमण के दौरान शरीर में होता है।

अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर में पाए जाने वाले हॉर्स शू केकड़े बसंत ऋतु से मई - जून के माह तक दिखाई देते हैं. सबसे ख़ास बात तो यह कि पूर्णिमा के वक्त हाई टाइड में यह समुद्र की सतह तक आ जाते हैं।

अब बात इन केकड़ों की कीमत की करें तो इनका एक लीटर नीला खून अंतरराष्ट्रीय बाजार में 11 लाख रुपये तक बिकता हैं। यह दुनिया का सबसे महंगा तरल पदार्थ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि हॉर्स शू केकड़े के खून का इस्तेमाल साल 1970 से वैज्ञानिक कर रहे हैं। 

इसके जरिये वैज्ञानिक मेडिकल उपकरणों और दवाओं के जीवाणु रहित होने की जांच करते हैं। इनमें आईवी और टीकाकरण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मेडिकल उपकरण शामिल हैं। अटलांटिक स्टेट्स मरीन फिशरीज़ कमीशन के अनुसार, हर साल पांच करोड़ अटलांटिक हॉर्स शू केकड़ों का इस्तेमाल मेडिकल कामों में होता है।

हॉर्स शू केकड़े के नीले खून में तांबा मौजूद होता है। साथ ही एक ख़ास रसायन होता है जो किसी बैक्टीरिया या वायरस के आसपास जमा हो जाता है और उसकी पहचान करता है।  साथ ही उसे निष्क्रिय करने में मदद करता है।

हॉर्स शू केकड़ों का खून उनके दिल के पास छेद करके निकाला जाता है। एक केकड़े से तीस फीसदी खून निकाला जाता है फिर उन्हें वापस समंदर में छोड़ दिया जाता है। 10 से 30% केकड़े खून निकालने की प्रक्रिया में मर जाते हैं। इसके बाद बचे मादा केकड़ों को प्रजनन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

जुलाई की शुरुआत में स्विट्जरलैंड की दवा कंपनी लोंजा ने अपने कोविड-19 वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के लिए तैयारी कर रही है। अमेरिका में ट्रायल करने के लिए दवा कंपनी को भारी मात्रा में लिमुलस अमीबोसाइट लाइसेट (limulus amebocyte lysate) की जरूरत पड़ेगी। यह तो हॉर्सशू क्रैब से मिलेगा

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