प्राचीन मुद्राएं भी कहती हैं श्री राम के अस्तित्व की कहानी, जानिए कुछ रोचक बातें

नई दिल्ली : भगवान राम भारत के कण-कण में समाहित है। यह लोकोक्तियों में हैं, ग्रंथों में हैं तो दूसरी तरफ प्राचीन मुद्राओं में भी राजा राम की प्रतिमाएं टंकित हैं। ऐसी ही एक प्राचीनतम् मुद्रा है बारहवीं शताब्दी के नरेश विग्रहराज-चतुर्थ के काल की। जिसमें भगवान राम के धनुर्धारी रूप को मुद्रा पर टंकित किया गया है। विश्व की सभ्यताओं में भारतीय संस्कृति अति प्राचीनतम है। यहां की भाषा संस्कृत को देव भाषा माना जाता है। इसी प्रकार यहां धर्म और संस्कृति के कण-कण में बसे हैं भगवान राम के कई प्रमाण जिवंत रूप में मिलते हैं। जो पुरातत्वविदों के द्वारा प्रमाणित हैं। इसी में से एक है बारहवीं शताब्दी की मुद्रा जिसे चाहमान के शाकंभरी नरेश विग्रहराज चतुर्थ ने टंकित करवाई थी। इस मुद्रा में मात्र प्रभु राम की ही प्रतिमा है।
ये स्वर्ण मुद्रा है जिसका भार चार ग्राम के लगभग है, यह गोलाकार आकार में मुद्रा है और देश में ऐसी मात्र दो ही मुद्राएं हैं। ये मुद्रा प्रभु राम के राज की कहानी कहती हैं। जो पौराणिक इतिहास का उत्कृष्ट नमूना है। भारतीय संस्कृति निधि के संयोजक और पुरातत्व के जानकार अशोक सिंह ठाकुर के अनुसार नरेश विग्र चतुर्थ का शासनकालजो पौराणिक इतिहास का उत्कृष्ट नमूना है। भारतीय संस्कृति निधि के संयोजक और पुरातत्व के जानकार अशोक सिंह ठाकुर के अनुसार नरेश विग्रहराज चतुर्थ का शासनकाल 1153 से 1163 तक था।
मुगल शासलनकाल में भी थी प्रभु राम पर मुद्रा यह दुर्लभ सिक्का जो इतिहास का दर्पण भी है इतिहास के जानवर और पुरातत्वविद अशोक सिंह ठाकुर ने अपने अनुपम संग्रह में अब तक संजोए रखा है ।उन्होंने बताया कि अकबर ने अपने शासनकाल में प्रभु रामचंद्र और सीता की प्रतिमा टंकित मुद्रा जारी करवाई थी। यह सोलवहीं शताब्दी में जारी की गई थी। उस काल में इस मुद्रा को विश्व में काफी प्रसिद्धी मिली थी। यदि पौराणिक मान्यताओं को देखा जाए तो प्रभु राम अखंड भारत के राजा थे। जिनका राज वर्तमान के कई देशों तक फैला हुआ था।