एक किशोर जो ‘गीता’ के कर्म से प्रभावित होकर आजादी के हवन कुंड में कूदा

रिपोर्ट : सत्यम दुबे
नई दिल्ली : महान क्रांतिकारियों की जब भी चर्चा होती है, तो खुदीराम बोस का नाम भी बड़े आदर के साथ एक सच्चे देश भक्त के रुप में लिया जाता है। इन क्रंतिकारियो ने अपने प्राणों पर खेलकर हमको यह पावन आजादी के दर्शन कराये। खुदीराम बोस जो पढ़ने की उम्र में आजादी के हवन कुंड में कूद पड़े और वो तब तक इस लड़ाई को लड़ते रहे जब तक उनके शरीर में प्राण थे।
खुदीराम ने जब भारत मां को आजाद कराने प्रण लिया तब उनकी उम्र केवल 16 वर्ष ही थी। कहते हैं न जब अपनी मां के लिए कोई बेटा प्रण करता है तब उसपर केवल मां की पीर हरने की ही जिद्द होती है, बेटे की उम्र उस वक्त मायने नहीं रखती है।
खुदीराम के पिता त्रिलोकनाथ बसु तहसीलदार के पद पर थे, और मां लक्ष्मीप्रिया देवी गृहिणी होने के साथ-साथ धार्मिकता की प्रतीक थी। मां की ही छवि खुदीराम पर पड़ी थी, मां के धार्मिक होने का एक प्रमाण यह भी है कि खुदीराम, श्रीमद् भगवत गीता के कर्म की अवधारणा से प्रभावित थे। गीत के कर्म की अवधारणा ने खुदीराम को इतना प्रेरित किया कि वो आजादी के हवन कुंड में क्रांतिकारियों के साथ मिलकर कूद पड़े और सन् 1905 में बंगाल के विभाजन ने उनके अंदर ज्वालामुखी का विस्फोट कर दिया, जिनके बाद क्रांतिकारियों के जुंगत पार्टी में शामिल हो गये।
खुदीराम बंगाल के विभाजन से इतने दुखी थे कि 16 वर्ष की उम्र में पुलिस स्टेशन के पास बम फोड़े, जिसका उद्देश्य सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाना था। जिसके बाद इनको गिरफ्तार कर लिया गया। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम ने अपने एक साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर मुजफ्फरपुर जिले के मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट पर हमला करने की योजना बनाई, जिसका मुख्य कारण यह था कि मजिस्ट्रेट क्रांतिकारियों के खिलाफ कठोर फैसला देता था। खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने योजना के तहत यूरोपीय क्लब के गेट पर मजिस्ट्रेट की बग्घी का इंतजार कर रहे थे, जैसे ही बग्घी खुदीराम को दिखाई दी उन्होने बग्घी पर बम फेंक दिया। दुर्भाग्य से उस दिन बग्घी में मजिस्ट्रेट नहीं था, बल्कि उस दिन बग्घी में मजिस्ट्रेट की दो दोस्त बैंठी थीं। दोनो इस हमले में मारी गईं। हमला करने के बाद दोनो भाग निकले, लेकिन बाद में प्रफुल्ल खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर लिये और खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उनपर इस हमले के जुर्म में मुकदमा चलाया गया। कोर्ट में खुदीराम पर आरोप सिद्ध हो गया और फांसी की सजा सुनाई गई। 19 वर्ष की उम्र में खुदीराम को आज के ही दिन 11 आगस्त 1908 को फांसी दे दी गई।